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अनुभूति में दिवाकर वर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
 

गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी

राम जी मालिक
हुमकती पवन

 

सूप खटकाती रही

सूप खटकाती रही
वह हर दीवाली
पर दलिद्दर दूर अब तक हो न पाया।

पीर के ओढ़े वसन
वह ज़िन्दगी एक
छाँव गूँगी
विवषता की मूर्ति सी है,
भूख अधरों पर
बसी डेरा जमाये
झुग्गियों में
आग की प्रतिमूर्ति-सी है,
सत्यनारायण-कथा
भी तो करा ली
पर खुशी के बीज कोई बो न पाया।

हो रहीं विकलांग
आषाएँ विखण्डित
ज़िन्दगी से
कट रहीं संवेदनाएँ,
आस के पथ में
मरुस्थल बो गये हैं
अमर बेलों से
ढकीं सम्भावनाएँ,
साध का हर फूल
बिखरा पांखुरी हो
और उसका हार कोई पो न पाया।

भरी आँखें
होंठ पर भीगी कहानी
मुस्कराहट
दर्द के काँटे संजोये,
जिन्दगी
करवट न लेती
भाग्य रेखा
बेचकर घोड़े बनी अनजान सोये,
दुःख के सीमान्त तक
दुख बढ़ गया जब
मन बेचारा हूक भरकर रो न पाया।

२२ अगस्त २०११

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