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अनुभूति में हरीश भादानी की रचनाएँ—

नये गीतों में-
कोलाहल के आँगन
तो जानूँ
साँसें
साँसों की अँगुली थामे जो
सुई

गीतों में-
कोई एक हवा
टिक टिक बजती हुई घड़ी
ड्योढ़ी रोज़ शहर फिर आए
धूप सड़क की नहीं सहेली
ना घर तेरा ना घर मेरा
पीट रहा मन बन्द किवाड़े
सभी दुख दूर से गुजरे


 

 

धूप सड़क की नहीं सहेली

जब कोरे मेड़ी ही कोरे
छत पसरी पसवाड़े फोरे
छ्जवालों से छींटे मल-मल
पहन सजे शौकीन हवेली

काँच खिड़कियों से बतियाये
गोरे आँगन पर इठलाये
आहट सुन कर ही जा भागे
जंगले पर बेहया अकेली

आँख रंग चेहरे उजलाये
हरियल दरी हुई बिछ जाए
छुए न सँवलाई माटी को
खाली सी पारात तपेली

सड़क पाँव का रोजनामचा
मँडे उमर का सारा खरचा
सुख के नावें जुगों दुखों की
बिगत बाँचना लगे पहेली
धूप सड़क की नहीं सहेली

२० फरवरी २०१२

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