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                  अनुभूति में 
                      
        
                    जगदीश 
                    श्रीवास्तव
                  
                  
                  की रचनाएँ— 
                    नए गीतों 
					में- 
					आलपिन सी चुभ रही 
					गीत गाना सीख 
					गीत टिटहरी के 
					धूप तपी चट्टानों पर 
					हाशियों 
					का शहर 
					गीतों में- 
                    उभरते हैं रेत पर 
                    सन्नाटा 
                    सूख गया नदिया का पानी   | 
                    | 
          
                  
                    
					 
					धूप तपी 
					चट्टानों पर 
					 
					धूप तपी चट्टानों पर  
					नंगे पाँव चले! 
					 
					बनजारे आवारा बदल 
					का विश्वास नहीं,  
					रहे पीठ पर घर लादें,  
					कोई इतिहास नहीं। 
					मंज़िल ही मंज़िल को तरसे  
					मन की प्यास तले! 
					 
					मन की टूटी दीवारों पर, 
					इश्तहार टांगे, 
					गिरवी रखी ज़िन्दगी से अब 
					कोई क्या माँगे? 
					मेहनत का सूरज आँखों में  
					हर दिन शाम ढले! 
					 
					दिन सूना, हर शाम उदासी 
					रात अलावों पर, 
					मौसम नमक छिड़क जाता है 
					मन के घावों पर। 
					थका मुसाफिर घर को लौटे, 
					सपने गए छले! 
					५ नवंबर २०१२  |