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                  अनुभूति में 
                      
        
                    जगदीश 
                    श्रीवास्तव
                  
                  
                  की रचनाएँ— 
                    नए गीतों 
					में- 
					आलपिन सी चुभ रही 
					गीत गाना सीख 
					गीत टिटहरी के 
					धूप तपी चट्टानों पर 
					हाशियों 
					का शहर 
					गीतों में- 
                    उभरते हैं रेत पर 
                    सन्नाटा 
                    सूख गया नदिया का पानी   | 
                    | 
          
                  
                    
					 
					गीत टिटहरी के 
					 
					सूखी हुई झील में उभरे 
					गीत टिटहरी के, 
					बिखर गए आँगन में जैसे 
					फूल दुपहरी के ! 
					 
					घाटी में फूँके हैं लगता 
					शंख हवाओं ने, 
					सूनेपन को बाँट लिया है 
					सभी दिशाओं ने। 
					व्यर्थ हो गए सभी समर्पण 
					मन की देहरी के! 
					 
					चक्की की आवाज़े गुम 
					किरणों के पाँवों में, 
					चरवाहों की वंशी के स्वर  
					उभरे गाँवों में। 
					टुटे हुए पंख हैं बिखरे 
					याद सुनहरी के! 
					 
					फटी बिंवाई सी धरती की  
					आँखें गीली हैं, 
					सूने-सूने घाट रह गए 
					प्यास लजीली है। 
					उड़ते रहे हवा में पन्ने 
					लिए कचहरी के! 
					५ नवंबर २०१२  |