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अनुभूति में जयराम जय की रचनाएँ-

गीतों में-
कांकरीट के महानगर में
कौन तोड़ेगा
दुनिया दिखती है अब तो
प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
सच ही बोलेंगे

  कांकरीट के महानगर में

कांकरीट के महानगर में रहते हैं जो लोग
सीमित अपने ही अपने में
कैसा है संयोग
1
सम्बन्धों को निगल रही है स्वारथ की घाटी
दादा-दादी वाली छूटी पीछे परिपाटी
अर्थ हेतु सब करते रहते
निशि-दिन नये प्रयोग
1
चेहरों पर है मौन उदासी केवल सम्बल है
हँसकर बात न करता कोई माथे पर बल है
गुणा-भागकर जोड़ घटाना
देख रहे हैं योग
1
गुमसुम स्वयं-स्वयं में रहते खोये-खोये हैं
काँटे नहीं और ने बोये सबने बोये हैं
फागुन के मौसम में देखो
कैसा हुआ वियोग
1
आस-पास घर के दरवाजे खास न कोई है
पछुआ संस्कृति की कैसी यह फसलें बोई हैं
इसीलिए एकाकीपन का
भोग रहे हैं भोग।
1
आओ हम सब मिलकर तोड़ें जिद्दी जंजीरे
चलो बनाएँ नवयुग में भी फिर से नई नजीरें
तभी हमारा जीवन होगा
सुन्दर और निरोग

१ दिसंबर २०१५
 

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