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जयराम जय

अनुभूति में यराम जय की रचनाएँ-

गीतों में-
कांकरीट के महानगर में
कौन तोड़ेगा
दुनिया दिखती है अब तो
प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
सच ही बोलेंगे

  प्रेम नगर से अर्थ नगर तक

प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
प्रगति हमारी है
फिर भी सबके चेहरों पर
केवल लाचारी है

धमाचौकड़ी मची हुई है
आगे बढ़ने की
चिन्ता एक सताती रहती
ढफली मढ़ने की

मिला नहीं सन्तोष अभी भी
मारा-मारी है

पास हमारे सब कुछ है पर
पल भर चैन नहीं
ऐसा कोई नहीं मिला है
जो बेचैन नहीं

चमक-दमक जो भी दिखती है
सिर्फ उधारी है

पग-पग पर संघर्ष हर्ष का
खोज रहे रस्ता
बचपन लादे हुए वजन से
है दूना बस्ता

मातु-पिता की हुई कामना
इनपे भारी है

बने डाक्टर अभियन्ता या
फिर हो आई.ए.एस.
इसके आगे और नहीं है
अपना कोई बस

संस्कृति-कला कूप का जल
अब सबको खारी है

बहुरेंगे फिर दिन बहुरेंगे
निश्चय है इक दिन
लेकिन यह सब हो सकता है
नहीं तुम्हारे बिन

आओ मिलकर छोड़ें जो
आदत जरदारी है

प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
प्रगति हमारी है
फिर भी सबके चेहरों पर
केवल लाचारी है

१ दिसंबर २०१५
 

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