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अनुभूति में यराम जय की रचनाएँ-

गीतों में-
कांकरीट के महानगर में
कौन तोड़ेगा
दुनिया दिखती है अब तो
प्रेम नगर से अर्थ नगर तक
सच ही बोलेंगे

  सच ही बोलेंगे

हम अभी तक मौन थे अब भेद खोलेगें
सच कहेंगे, सच लिखेंगे
सच ही बोलेंगे

धर्म आडम्बर हमें कमजोर करते हैं
जब छले जाते तभी हम शोर करते हैं
बेचकर घोड़े नहीं
अब और सोयेंगे

मान्यताओं का यहाँ पर क्षरण होता है
घुटन के वातावरण का वरण होता है
और कब तक आस में
विष आप घोलेंगे

हो रहे हैं आश्रमों में भी घिनौने पाप
कौन बैठेगा भला यह देखकर चुप-चाप
जो न कह पाये अधर
वह शब्द बोलेंगे

आस्था की अलगनी पर स्वप्न टाँगे हैं
ढोंगियों से जोड़कर वरदान माँगे हैं
और कब तक ढाक वाले
पात डोलेंगे

दूर तक छाया अँधेरा है घना कोहरा
आड़ में धर्मान्धता की राज है गहरा
राज खुल जायेगा सब
यदि साथ हो लेंगे

१ दिसंबर २०१५

 

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