अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कृष्ण बिहारीलाल पाण्डेय की रचनाएँ-

गीतों में-
अपना समय लिखा

गुणगान की अन्त्याक्षरी में
ज्योतिषी जी कह रहे हैं
नदी के खास वंशज
है कथानक सभी का वही


 

है कथानक सभी का वही

है कथानक सभी का वही दुख भरा
जिन्दगी सिर्फ शीर्षक
बदलती रही

जिन्दगी ज्यों किसी कर्ज के पत्र पर
काँपती उँगलियों के विवश दस्तखत
साँस भर भर चुकाती रही पीढ़ियाँ
ऋण नहीं हो सका पर तनिक भी विगत
जिन्दगी ज्यों लगी ओंठ पर बन्दिशें
चाह भीतर उमड़ी
मचलती रही

तेज आलाप के बीच में टूटती
खोखले कंठ की तान सी जिन्दगी
लग सका न जो हिलते हुए लक्ष्य पर
उस बहकते हुए बाण सी जिन्दगी
हो चुका खत्म संगीत महफिल उसी
जिन्दगी दीप सी किन्तु
जलती रही

देखने में मधुर अर्थ जिनके लगें
जिन्दगी सेट की सलवटों की तरह
जागरण में मगर रात जिनकी कटी
जिन्दगी उन विमुख करवटों की तरह
जिन्दगी ज्यों गलत राह का हो सफर
इसलिए तीर्थ की छाँह
लती रही

बदनियत गाँव के चौंतरे पर टिकी
रूपसी एक सन्यासिनी जिन्दगी
द्वार आये पलों को गँवा भूल से
हाथ मलती हुर्इ्र मानिनी जिन्दगी
जिन्दगी एक बदनाम चर्चा हुई
बात से बात जिसमें
निकलती रही

जिन्दगी रसभरे पनघटों सी जहाँ
प्यास के पाँव खोते रहे संतुलन।
जिन्दगी भ्रान्तियों का मरूस्थल जहाँ
हर कदम पर बिछी है तपन ही तपन।।
जिन्दगी एक शिशु सी करूण भूख सी
चन्द्रमा देख कर जो
बहलती रही।

१७ सितंबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter