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अनुभूति में कृष्ण बिहारीलाल पाण्डेय की रचनाएँ-

गीतों में-
अपना समय लिखा

गुणगान की अन्त्याक्षरी में
ज्योतिषी जी कह रहे हैं
नदी के खास वंशज
है कथानक सभी का वही


 

नदी के खास वंशज

घाट पर बैठे हुए हैं जो सुरक्षति
लिख रहे वे नदी की
अंतर्कथाएँ

आचमन तक के लिये उतरे नहीं जो
कह रहे वे खास वंशज हैं नदी के
बोलना भी अभी सीखा है जिन्होने
बन गए वे प्रवक्ता पूरी सदी के
पर जिन्होंने शब्द साधे कर रहे वे
दो मिनट कुछ बोलने की
प्रार्थनाएँ

थी जरा सी चाह ऐसा भी नहीं था
आँख छोटी स्वप्न कुछ ज्यादा बड़े थे
बस यही चाहा कि सुख आये वहाँ भी
जिस जगह हम आप सब पीछे खड़े थे
दूर तक दिखते नहीं है आगमन पर
क्या करें मिटती नहीं ये
प्रतीक्षाएँ

पुरातत्व विवेचना में व्यस्त हैं वे
उँगलियों से हटा कर दो इंच माटी।
होरहे ऐसे पुरस्कृत गर्व से वे
खोज ली जैसे उन्होने सिन्धु घाटी
बन्धु ऐसे जड़ समय में किस तरह हम
बचा कर जीवित रखें
संवेदनाएँ।

सब तरह आनन्द है राजी खुशी है
हम सभी आजाद है जकड़े नियम में
तैरती है झिलमिलाते रंग वाली
मछलियाँ ज्यों काँच के एम्वेरियम में
सिर्फ पानी बदलता रहता हमारा
नही बदली हैं अभी तक
विवशताएँ।

१७ सितंबर २०१२

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