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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएँ

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए

इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा

ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

  एक बच्चे ने छुआ

बात कल की
एक बच्चे ने छुआ हमको
हो गई मीठी सभी साँसें!

हम सुबह की आरती को
सुन रहे थे
धूप भी थी गुनगुनी
नदी-तट की हवा में भी
थी खुनक-सी फागुनी

गुलमोहर के पेड़ से
छनती हुई
रात-भर हमको दिखी थीं
चाँदनी साँसें!

किंतु ये सब
बिना बच्चे की छुअन के
थे अधूरे
नेह का जो स्पर्श
उसने दिया हमको
उसी से सुख हुए पूरे

अभी भी
दोहरा रही हैं
मंत्र उसके दिए
अपनी काँपती साँसें!

काश!
वह बच्चा छुए सबको
कि सबकी आँख में जल हो
हुई पत्थर देह जो
वह, सुनो
फिर से नई कोंपल हो

जो चतुर है
या हिसाबी
बनें वे भी फूल की
खुशबू-भरी साँसें!

२३ नवंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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