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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएँ

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए

इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा

ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

 

वानप्रस्थी ये हवाएँ

सुनो, साधो!
वानप्रस्थी ये हवाएँ- कहाँ जाएँ
वन नहीं हैं!

दूर तक सड़कें-इमारत
शोर है बस
धुएँ के बादल घिरे
हर ओर नीरस

सुनो, साधो!
इस नगर में सिर्फ़ हैं अंधी गुफ़ाएँ
वन नहीं हैं!

एक कोने में खड़ी हैं
ये ठगी-सी
बावरे दिन
वक्त है गदहा-पचीसी

सुनो साधो!
जल रही है झील- झुलसी हैं दिशाएँ
वन नहीं हैं!

सोचती ये
कहाँ नंदन-वन पुराने
उत्सवी आकाश
चिड़ियों के ठिकाने

सुनो, साधो!
क्यों अपाहिज हो रही हैं ये हवाएँ
वन नहीं हैं!

1मई 20007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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