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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएँ

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए

इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा

ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

  इसी गली के आख़िर में

इसी गली के
आख़िर में है
एक लखौरी इंर्टों का घर

किस पुरखे ने था बनवाया
दादी को भी पता नहीं है
बसा रहा
अब उजड़ रहा है
इसमें इसकी ख़ता नहीं है
एक-एक कर
लड़के सारे
निकल गए हैं इससे बाहर

बड़के की नौकरी बड़ी थी
उसे मिली कोठी सरकारी
पता नहीं कितने सेठों ने
उसकी है आरती उतारी
नदी-पार की
कॉलोनी में
कोठी बनी नई है सुन्दर

मँझले-छुटके ने भी
देखादेखी
बाहर फ्लैट ले लिये
दादी-बाबा हैं जब तक
तब तक ही
घर में जलेंगे दीये
पीपल है
आँगन में
उस पर भी रहता है अब तो पतझर।

१ जून २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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