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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
चुप रहना हो
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
मैं चला तुम भी चलो
हाथ गैरों से मिलाया

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

 

बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती

बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती,
अगर तनहाइयों में बात होती।

तसव्वुर में कहीं घिरतीं घटाएँ,
चमकतीं बिजलियाँ बरसात होती।

सिमटते फासले साँसें महकतीं,
मचलते ख्वाब दिन में रात होती।

उलझ कर चाल में दिल हार जाता,
हुई हर एक शह पर मात होती।

कभी इस चाँद-सा खिल कर दिखाता,
अगर उस चाँद की औकात होती।

१ जुलाई २००७

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