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अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
चुप रहना हो
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
मैं चला तुम भी चलो
हाथ गैरों से मिलाया

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

  दिन गया

दिन गया ठहरे रहे हालात,
फिर वही सपने अकेली रात।

वादियाँ गुमसुम दिशायें मौन,
कौन करता धड़कनों से बात।

फैसलों पर उलझनों का बोझ,
हसरतों पर बेबसी तैनात।

छल गई चौथे पहर के साथ,
घोर तम को किरन की सौग़ात।

दूर घर से रह न पाई और,
घूम फिर कर लौट आई प्रात।

१४ सितंबर २००९

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