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अनुभूति में नईम की रचनाएं-

गीतों में
अपने हर अस्वस्थ समय को
क्या कहेंगे लोग
करतूतों जैसे ही
काशी साधे नहीं सध रही
किसकी कुशलक्षेम पूछें
खून का आँसू
पानी उछाल के
प्रार्थना गीत
फिर कब आएंगे
महाकाल के इस प्रवाह में
लगने जैसा
शामिल कभी न हो पाया मैं
हम तुम
हो न सके हम

 

हम तुम

हम तुम
कोशिश ही करते रह गये जनम भर,
लेकिन वो
जाने, क्यों, कैसे -
रातों-रात महान हो गये?

नये संस्करण में किताब के -
शब्द असम्भव शेष नहीं अब,
कदम-कदम
सीढ़ी-दर-सीढ़ी
चलने वाला देश नहीं अब
बिना बात के मरते ही रह गये जनम भर
अनचाहे इनको आसंदी,
उनके लिए मचान हो गये

परम्पराओं के क्या मानी,
देश-काल हो गये असंगत
श्राद्धपक्ष ही नहीं साल भर
कौवे जीम रहे हैं पंगत
हम तुम
हुक्के भरते ही रह गये जनम भर
कोढ़ खाज से गलित आचरण -
उनके आज प्रमाण हो गये

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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