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अनुभूति में नईम की रचनाएं-

गीतों में-
अपने हर अस्वस्थ समय को
क्या कहेंगे लोग
करतूतों जैसे ही
काशी साधे नहीं सध रही
किसकी कुशलक्षेम पूछें
खून का आँसू
पानी उछाल के
प्रार्थना गीत
फिर कब आएंगे
महाकाल के इस प्रवाह में
लगने जैसा
शामिल कभी न हो पाया मैं
हम तुम
हो न सके हम

 

किसकी कुशलक्षेम पूछें

कसकी कुशल-क्षेम पूछें अब,
किसको
अपनी पीर परोसे?
किसको कहाँ
असीसें भेजें
किस किस की चुप्पी को कोसे?

फिक्रमंद इन-उनकी खातिर
अपनी ही गो खबर नहीं है।
समय रूक गया है पहाड़ सा
बजता कोई गजर नहीं है।
पहचाने खो गई हमारी
किनको छोड़ें, किन्हें भरोसें?

रकबे बचे रह गए थे जो
इस सीलिंग, उस चकबंदी से,
लाख जतनकर बचा न पाए
हम एरावत औ नंदी से।
रखवाले सो रहे तानकर -
प्रजातंत्र को कैसे दोषें?

प्राणों पर बन आए उजागर
शरद, शिशिर हेमंतों के दिन,
विगर पूछते - हमसे बैठे
थानेदार बसंतों के दिन।
अब न रहीं वो रितुएें जिनके
जूड़े में अपनापन खोंसे।

किसकी कुशल क्षेम पूछे अब,
किसको
अपनी पीर परोसें

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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