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अनुभूति में ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग' की रचनाएँ -

अंजुमन में नयी ग़ज़लें-
अपना-अपना मधुकलश
चाँद बनाकर
जहाँ चलना मना है
धर्मशाला को घर
फूल के अधरों पे
 

गीतों में-
कहाँ पे आ गए हैं हम
जैसे हो, वैसे ही
सात्विक स्वाभिमान है
गीत कविता का हृदय है

 

गीत कविता का हृदय है

हम अछांदस आक्रमण से, छंद को डरने न देंगे
युग-बयार बहे किसी विधि, गीत को मरने न देंगे

गीत भू की गति, पवन की लय, अजस्त्र प्रवाहमय है
पक्षियों का गान, लहर विधान, निर्झर का निलय है
गीत मुरली की मधुर ध्वनि, मंद्र सप्तक है प्रकृति का
नवरसों की आत्मा है, गीत कविता का हृदय है
बेसुरे आलाप को, सुर का हरण करने न देंगे
गीत को मरने न देंगे।

शब्द संयोजन सृजन में, गीत सर्वोपरि अचर है
जागरण का शंख, संस्कृति-पर्व का पहला प्रहर है
गीत का संगीत से संबंध शाश्वत है, सहज है
वेदना की भीड़ में, संवेदना का स्वर मुखर है
स्नेह के इस राग को, वैराग्य हम वरने न देंगे
गीत को मरने न देंगे।

गीत हैं सौंदर्य, शिव साकार, सत का आचरण है
गीत वेदों, संहिताओं के स्वरों का अवतरण है
नाद है यह ब्रह्म का, संवाद है माँ भारती का
गीत वाहक कल्पना का, भावनाओं का वरण है
गीत-तरु का विकच कोई पुष्प हम झरने न देंगे
गीत को मरने न देंगे।

1 जुलाई 2006

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