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अनुभूति में ओम प्रकाश तिवारी की रचनाएँ

कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ

गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
बूँद बनी अभिशाप

अंजुमन में-
ख़यालों में

  पाँच चुनावी कुंडलियाँ

चूका समझो जन्म का चूक गया जो आज
गलत व्यक्ति के हाथ में दे बैठा जो राज
दे बैठा जो राज कहेगी अगली पीढ़ी,
बापूजी तो तोड़, गए चढ़ने की सीढ़ी।
अगर चाहते आप, न जाए खुद पर थूका,
उसे न देना वोट, काम से जो है चूका

कोई लुभाए धर्म तो कोई रिझाए जात,
कोई करता नहिं दिखे महँगाई की बात।
महँगाई की बात गई जो रोटी छीनी,
चौंसठ में है दाल और चौबिस में चीनी।
कुकिंग गैस के हेतु पिएम की पत्नी रोई,
फिर भी मुद्दा गौण, करे नहिं चर्चा कोई

नेता जी के सामने भले न करो बवाल,
किंतु पूर्व मतदान के कुछ तो करो सवाल।
कुछ तो करो सवाल आपका हक है भाई,
इसीलिए सरकार तो हमने थी बनवाई।
इस मौसम में आय हमारा मत जो लेता,
देता नहीं जवाब, हमें क्यों आखिर नेता।

हफ्ता थे जो माँगते माँग रहे हैं वोट,
छीना करते नोट थे बांट रहे अब नोट।
बाँट रहे अब नोट चाहते बनें विजेता,
कुछ भी ले लो किन्तु, बना दो इनको नेता।
पकड़ेंगे फिर राह, पुरानी रफ्ता रफ्ता,
चुनकर आने पर भी ये माँगेंगे हफ्ता।

पत्रकारिता बन गई है जब से व्यवसाय,
कलम बिक रही चाय पर कॉलम बोटी खाय ।
कॉलम बोटी खाय पिए अँग्रेजी दारू,
कभी मिशन थी आज बनी यह गाय दुधारू।
द्वार-द्वार पर जाय करे जो चट्टुकारिता,
समझ लीजिए वोहि कर रहा पत्रकारिता ।

२४ जुलाई २००६

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