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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
जिंदगी रचती
तुमने ही बिन पढ़े
पुराने गाँव से
बाल्मीक की प्रथा
हाशिये पर आदमी ठहरा

गीतों में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
छितरी छाँव हुआ
झेल रहे है
पहले ही लील लिया

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

तुमने ही बिन पढ़े

तुमने ही बिन पढ़े
जिन्‍हें कोने में डाल दिया
वे तो सीधी-साधी लिपि में
लिखी इबारत हैं

उनमें तेरा बचपन है
तेरा कैशोर्य भरा
उनमें तेरा पढ़ना-लिखना
यौवन हरा-भरा
झुकी कमर झुरियाये चेहरे
अम्‍मा-बापू के
उम्‍मीदों के सूखे सरवर
कितने आहत हैं

अटकन-बटकन दही चटोकन
चींटी-धप तेरी
क्षण बाहर क्षण भीतर
तेरी घर-घर की फेरी
सिसक-सिसक कंधे पर रोती
बिट्‌टो हुई बिदा
धीरज देने वाले
तेरे प्‍यार भरे खत हैं

उम्‍मीदों का पेड़ आँख में
कब का मरा हुआ
तेरी गुजरी बहना का
वह चेहरा डरा हुआ
मंगलकामनाओं की खातिर
जुड़ते हाथ यहाँ
चंदन वंदन पुष्‍प ईश को
अर्पित अक्षत हैं

४ मई २०१५

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