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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
जिंदगी रचती
तुमने ही बिन पढ़े
पुराने गाँव से
बाल्मीक की प्रथा
हाशिये पर आदमी ठहरा

गीतों में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
छितरी छाँव हुआ
झेल रहे है
पहले ही लील लिया

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

जिंदगी रचती

जिन्‍दगी रचती नये आयाम
पतन के उन्‍नयन के जनग्राम

टूटता तन सुबह
उबलन दोपहर
पसीने की धार
श्रम पर बेअसर
थकन को ले आस मिलती शाम

मिस्र है ट्‌यूनीशिया है
लीबिया अफगान है
धधकती जन-ज्‍वाल भू पर
न्‍याय का कोहराम है
रक्‍त देकर भी बदलनी व्‍यवस्‍था नाकाम

जिन्‍दगी का मृत्‍यु पर
अंकुर पुनः फूटा
सृजन के उल्‍लास का
झरना झरा फूटा
स्‍वप्‍न की गठरी लिए सिर शहर जाता ग्राम

४ मई २०१५

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