अनुभूति में श्याम
नारायण मिश्र की
रचनाएँ -
गीतों में-
गीत कालातीत पर्वत के
प्रणयगंधी याद में
बाँस का जंगल जला
शांति के शतदल
समय के देवता
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गीत कालातीत पर्वत के
घाटियों में,
लाल-पीली माटियों में,
ढल रहे हैं नील-निर्झर-गीत पर्वत के।
पीकर बूँद पखेरू पागल
जंगल-जंगल चहके।
चुल्लू भर पीकर वनवासी
घाटी-घाटी बहके।
मादलों से,
होड़ करते बादलों से,
जब बरसते हैं सुधा-संगीत पर्वत के।
सुबह पहाड़ों के माथों पर
मलती है जब रोली।
माला हो जाती वनवासी
कन्याओं की टोली।
अर्गलाएँ,
तोड़ सारे द्वन्द्व सीमाएँ,
तौलते हैं बाजुओं को मीत पर्वत के।
दुपहर छापक पेड़
ढूँढकर बैठी काटे घाम।
संध्या की रंगीन छटाएँ
बंजारों के नाम।
यामिनी में,
दूध धोई चाँदनी में,
तैर जाते गीत कालातीत पर्वत के।
६ मई २०१३
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