अनुभूति में श्याम
नारायण मिश्र की
रचनाएँ -
गीतों में-
गीत कालातीत पर्वत के
प्रणयगंधी याद में
बाँस का जंगल जला
शांति के शतदल
समय के देवता
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प्रणयगंधी याद में
चू रहा मकरंद फूलों से,
उठ रही है गंध कूलों से।
घाटियों में
दूर तक फैली हुई है चाँदनी
बस तुम नहीं हो।
गाँव के पीछे
पलाशों के घने वन में
गूँजते हैं बोल वंशी के रसीले
आग के
आदिम-अरुण आलोक में
नाचते हैं मुक्त कोलों के कबीले
कंठ में
ठहरी हुई है चिर प्रणय की रागिनी
बस तुम नहीं हो।
किस जनम की
प्रणयगंधी याद में रोते
झर रहे हैं गंधशाली फूल महुओं के
सेज से
भुजबंध के ढीले नियंत्रण तोड़कर
जंगलों में आ गए हैं वृन्द वधुओं के
समय के गतिशील नद में
नाव-सी रुक गई है यामिनी
बस तुम नहीं हो।
६ मई २०१३
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