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अनुभूति में विष्णु विराट की रचनाएँ-

कविताओं में-
कुछ व्यथित सी
प्यार की चर्चा करें
राजा युधिष्ठिर
रोशनी के वृक्ष
वनबिलाव
व्याघ्रटोले की सभाएँ
वेदों के मंत्र हैं
शेष सन्नाटा
सुमिरनी है पितामह की

संकलन में-
ममतामयी- माँ तुम्हारी याद
पिता की तस्वीर- पिता

 

सुमिरनी है पितामह की

मंत्र है यह
भजन है
यह प्रार्थना है,
इसे दूषित हाथ से छूना मना है,
यह प्रतिष्ठा है मेरे गृह की,
यह सुमरनी है पितामह की।

राम हैं इसमें, अवध है, जानकी है,
छवि इसी में कृष्ण की मुस्कान की है,
वेद इसमें, भागवत, गीता, रमायन,
आसुरी मन वृत्तियों का है पलायन
गीत है, गोविंद का गुनगान है ये,
भूमि से गोलोक तक प्रस्थान है ये,
थाह है हर भ्रांति के तह की,
यह सुमरनी है पितामह की।

ज़िंदगी भर एक निष्ठा पर रहे जो,
टूट जाना किंतु झुकना मत कहे जो,
प्राण है इसमें, पवन है, आग भी है,
ज्ञान है, वैराग्य है, अनुराग भी है,
अडिग है विश्वास, निष्ठा का समर्पण,
व्यक्ति के सदभाव का है सही दर्पण,
यह बगीची याद की महकी,
यह सुमरनी है पितामह की।

१ जनवरी २००६

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