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अनुभूति में विष्णु विराट की रचनाएँ-

कविताओं में-
कुछ व्यथित सी
प्यार की चर्चा करें
राजा युधिष्ठिर
रोशनी के वृक्ष
वनबिलाव
व्याघ्रटोले की सभाएँ
वेदों के मंत्र हैं
शेष सन्नाटा
सुमिरनी है पितामह की

संकलन में-
ममतामयी- माँ तुम्हारी याद
पिता की तस्वीर- पिता

 

व्याघ्र टोले की सभाएँ

व्याघ्र टोले की सभाएँ
भेड़ियों की मंत्रणाएँ,
हिरन-वन में।

सब शिकारी मन गए हैं,
धनुर्धारी तन गए हैं,
युद्धवीरों को मिला सादर निमंत्रण
शांति से संहार होंगे,
अब न सोच विचार होंगे,
झूठ सच का अब न होगा सिंधु-मंथन
सब अहिंसक देश होंगे,
सत्यनिष्ठ संदेश होंगे,
रक्षकुल की घोषणाएँ
हिरन-वन में।

अब न कोई त्रस्त होगा,
तृप्त उदर समस्त होगा,
सुलभ सामिष भोज होगा एक जैसा
ये नया अभियान होगा,
रुचि रुधिर का पान होगा,
हाथ श्वेत सरोज होगा एक जैसा
शक्ति सबके साथ में है,
दंड सबके हाथ में है,
सब पसीने में नहाएँ,
हिरन-वन में।


फिर खुशी के खेल होंगे
सुर-असुर में मेल होंगे,
फिर नये संवाद संयोजित सुहाने
क्रुर मुस्काते हुए-से
दांत दिखलाते हुए-से
सब जुड़े हैं आज जंगल के मुहाने
सभ्यता में नत हुए सब,
धवल वसनावृत हुए सब,
क्यों परस्पर ख़ौफ़ खाएँ
हिरन-वन में?

१ जनवरी २००६

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