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अनुभूति में ज्योतिर्मयी पंत की रचनाएँ-

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मेरा भारत- अनुपम अपना देश है (दोहे)
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विजय पर्व- समस्याओं के दशानन (दोहे)
रघुनंदन वंदन- धरा पर लौटें रघुपति (कुंडलिया)

 

पौध को रोपना (जनक छंद)

नीम पौध को रोपना।
आजीवन जो साथ दे-
यही विरासत सौंपना।

पीपल बरगद आँवले।
आम नीम शुचि छाँव दें-
काट न तरु ओ बावले।

पुरुखों के उपदेश हैं।
वृक्ष मनुज के मित्र से-
सदा हमें सुखदेत हैं।

प्रसाधनों से प्रेम है।
विज्ञापन बाज़ार में-
नीम प्रकृति की देन है।

साबुन- शैम्पू क्रीम लें।
रंग-रूप जो निखरते-
नुस्खे घर के परख लें।

परहित उत्तम धर्म है।
शिवि दधीचि या कर्ण से-
सब धर्मों का मर्म है।

१० जून २०१३

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