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रघुनंदन वंदन- धरा पर लौटें रघुपति (कुंडलिया)

 

सावन के माहिया


नभ बदली घिर आई
लो आया सावन
बेटी पीहर आई।

झूले हैं शाखों में
आओ सब सखियों
खुशियाँ भर आँखों में।

घन मृदंग से बजते
बूँदों की पायल
मोर नृत्य वन सजते

सखियाँ हिल मिल गायें
बागों में झूले
कजरी-तीज मनाएँ।

प्यास बुझी खेतों की
बरसा जो पानी
खुशहाली भेंटों की।

२७ अक्तूबर २०१४

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