अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अवतंस कुमार की रचनाएँ

नई कविताओं मे
अहसास
दरमियाँ
पैबंद
मैं और मेरी तनहाई

कविताओं में-
आज मुझे तुम राह दिखा दो
विवेक
शाम और शहर
पत्ता और बुलबुला

  मैं और मेरी तनहाई

मैं सोया था,
पर आँखें मेरी खुली थीं।

वो चाँद, वो सितारे।
हर दम पर साथ देने का
दम भरने वाले।
वो सहारे,
वो पथ-प्रदर्शक, मेरे मार्गदर्शक।
मेरे जर्जर जीवन की लाठी
मैंने सोचा कि मैं टिका हूँ...
टिक सकता हूँ जिसपर।

वो पुष्प परागयुक्त
सुगंधियाँ बिखेरते।
जो भ्रमरों ने पाया आश्रय
रसपान किया, मदमस्त हुए।
मैंने सोचा...
''मैं भी पान करूँगा, मदिरा का मान करूँगा।''
दो घूँट... सिर्फ़ दो घूँट...

पर लब तलक आने के पूर्व ही
पैमाना छलका
प्याला भी टूटा
लाठी भी छूटी
धम्म्म्मममम।

सुनसान वियावान पथ पर
न धूप न साया
न तारे, न नज़ारे
न फूल, न कलियाँ
बस मैं और मेरी तनहाई।
पुनश्च, तनहाई।
मैं सोया था
पर आँखें मेरी खुली थीं।

३१ मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter