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अनुभूति में शोभा मिश्रा की रचनाएँ-

 

छंदमुक्त में-
कुछ ऐसा हो जाए
तुम्हारी उम्र का एक मेजपोश
माँ

सखी जब तुम वापस आना
सुन री सखी !

 

 

माँ

क्या हुआ ..?
हिचकियाँ तो आई नहीं होंगी
शायद भीग गया होगा आँचल
तभी तो कलप उठा तुम्हारा मन
चौंक कर जाग गयीं पुकारने लगी मुझे
अब हथेलियों को मत रोको
यहाँ कुछ भी सूखेगा नहीं
बरस रहा है लगातार
मेरे गालों से होकर,
तुम्हारे हृदय तक पहुँच गया
अपनी नाभि की लतर से फिर जोड़ लो
भूख, प्यास, उजाले से अनजान
शायद जीवित भी नहीं हूँ
फिर जीवन दो
आहार दो
अँधेरे में साँस लेने दो...

११ नवंबर २०१३

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