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अनुभूति में शुभम
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अस्तित्व
कलम
पता नहीं क्यों
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पता नहीं क्यों
पता नहीं सपना है या हकीकत है
या शायद ये मुहब्बत है
दिल की हर धड़कन देती इक दस्तक थी
साँसों की गरमाहट में
उसकी आहट थी
नस-नस में लहू बनके समाई थी
फिर भी चारों तरफ मेरे तन्हाई थी
अब मुझे उसका चेहरा, नाम, रूप-रंग
कुछ भी तो याद नहीं
न कल थी कोई तमन्ना
आज भी कोई फरियाद नहीं
मन में जो छवि थी
धूमिल हो गई है
आँखें इन्तजार में बोझिल हो गई हैं
जिसके लिये मैने इतना सोचा
आज वो कहीं है ही नहीं
या शायद वो कभी थी ही नहीं
बस उसके ख्यालों में जीता रहा मैं आज तक
पता नहीं क्यों ?
१ फरवरी २००३ |