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अनुभूति में सुशील कुमार पटियाल की रचनाएँ—

कविताओं में-
अपने ना बेगाने
चाहत ही चाहत हो चारों ओर
पैसे की शान
बीते वर्ष पचास

 

बीते वर्ष पचास

बीते वर्ष पचास
बहुत कुछ हुआ ख़ास
मगर वो जो गरीब हैं
अब भी लगाए बैठे हैं आस
कि शायद कोई सेठ
खोलेगा कार की खिड़की
और पूछेगा
ये तिरंगा कितने का दे रहे हो?
इतना सुनते ही खिल जाएगा चेहरा
चलो कोई देशभक्त है!!

आज मना रहे हैं हम
५८वाँ गणतंत्र, मगर
नहीं मिला अब तक गरीबी हटाने का मंत्र
ये कैसी दुविधा में भारत है
क्यों गड़बड़ाया है इसका सारा तंत्र!!

१४ अप्रैल २००८

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