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अनुभूति में सुशील कुमार पटियाल की रचनाएँ—

कविताओं में-
अपने ना बेगाने
चाहत ही चाहत हो चारों ओर
पैसे की शान
बीते वर्ष पचास

 

पैसे की शान

हर शान बनी है पैसे से
हैं बने पैसे के इंसान
नहीं मूल्य कोई इंसानियत का है
ज़रा देख ले तू भी भगवान

सच्चे का सिर नीचा है
है ऊँचा उठ रहा बेईमान
काम करे जो सारा दिन
हुक्म चलाए उस पे धनवान

चार कदम जो पैदल चलते
घिस जाते हैं उनके पाँव
काम करके पेट जो भरते
एक गाँव से दूसरे गाँव

धन बना अब सच्चा ईमान
देख ले आके अब तू भी भगवान
याद गरीब तुझे रखता है
पर भूल गया अब है धनवान

तन को ज़रा कष्ट न पहुँचे
सोच रहा मूर्ख नादान
जीवन का फिर मज़ा क्या लिया
किया नहीं जिसने कोई काम

चिर स्थाई समझ बैठा खुदको
भूल गया है वो समसान
मन का मनका नहीं फेरते
प्रभु का करते मुख से गुणगान

गहरा भाव है छुपा यहाँ पे
समझे जो कोई हो इंसान
मानव वही है यारो
हो वो निर्धन या हो धनवान

१४ अप्रैल २००८

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