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अनुभूति में दीपिका ओझल की
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दीया
मन का मनका
मुश्किल
मैं पगली
सखी

 

दीया

जमीं चल रही है, फलक चल रहा है
बुझा दो दिया अब तलक जल रहा है?
जो पूरी न होगी कभी ज़िंदगी में
भला ऐसी उम्मीद का हम करें क्या?
मिलेगी तुझे तेरी ख्वाबों की मंज़िल
ये कह भाग्य तारा हमें छल रहा है

बुझा दो दिया अब तलक जल रहा है

जहाँ में सजी है चिरागों की महफ़िल
मगर मैं हूँ तन्हा है तन्हा मेरा दिल
जो खुद को कभी हमने खुद ही दिया था
वो झूठा दिलासा हमें खल रहा है

बुझा दो दिया अब तलक जल रहा है

ये चाहत की मंज़िल वो सपनों की राहें
किसी का सहारा किसी की निगाहें
ये झूठी जहाँ की है तस्वीर सारी
ये कहता क्षितिज पर अनल ढल रहा है

बुझा दो दिया अब तलक जल रहा है

२४ अप्रैल २००६

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