अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में दीपिका ओझल की
रचनाएँ—
दोहे-
फ़कीर

कविताओं में—
काश
कैसे कहूँ
चंदा
तिमिर को चीर कर
तुहिन की बूँद
दीया
मन का मनका
मुश्किल
मैं पगली
सखी

 

मुश्किल

बडा आसाँ है बतलाना
कि तुमको चाहते हैं हम
बङा मुश्किल ये समझाना
कि हमको भी सराहो तुम

सदा से मैं समर्पित तुमको
तनमन करती आई हूँ
कभी तो नेह की कलियाँ
मेरे पथ में बिछाना तुम

बड़ा आसाँ है बतलाना
कि तुमको चाहते हैं हम
बङा मुश्किल ये समझाना
कि हमको भी सराहो तुम

नहीं केवल कली सुरभित
कि जिसको भ्रमर बनो भोगो
कभी तो बाल कौतुहल ले
मेरी बाहों में आना तुम

बड़ा आसाँ है बतलाना
कि तुमको चाहते हैं हम
बङा मुश्किल ये समझाना
कि हमको भी सराहो तुम

३१ मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter