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                   अनुभूति में 
					
					आशीष श्रीवास्तव की रचनाएँ- 
                  अंजुमन में-- 
					आज बरसों हुए 
					गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का 
					जैसे कभी अपना माना था 
					दिल को बचाना मुश्किल था 
					 
					दरिया ज़रा 
					धीरे चल 
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					आज बरसों हुए 
					 
					आज बरसों हुए उस मुलाकात 
					को जिस में हम तुम बिछड़ कर जुदा हो गए 
					टूट कर हर तमन्ना बिखर सी गयी ख्वाब देखे थे जो क्या से क्या 
					हो गए  
					 
					तू मेरी आरजू थी ऐ रूह-ए-ग़ज़ल पहली पहली ही ख्वाहिश था मैं भी 
					तेरी 
					आज तुम हो सितमगर हमारे लिए हम तुम्हारे लिए बेवफा हो गए  
					 
					इससे पहले भी आये थे तूफान बहुत उठा करती थी सागर में लहरे कई 
					कश्तियाँ क्यों अचानक बहकने लगी आज बेबस से क्यों नाखुदा हो गए
					 
					 
					मुन्तजिर बनके दर दर 
					भटकते रहे नाम सी आँखों में तस्वीर तेरी लिए 
					राज़ तुमसे छुपाये थे जो उम्र भर चंद अश्को में वो सब बयां हो 
					गए  
					 
					कतरा कतरा बिखरने लगी जिंदगी और बचपन बिछड़ कर कहानी बना 
					दुनिया वालो ने हमको जुदा जब किया तब ये जाना कि हम तुम जवां 
					हो गए 
					 
					
					२९ अगस्त २०११ 
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