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अनुभूति में आशीष श्रीवास्तव की रचनाएँ-

अंजुमन में--
आज बरसों हुए
गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का
जैसे कभी अपना माना था
दिल को बचाना मुश्किल था

दरिया ज़रा धीरे चल

 

दरिया जरा धीरे चल

दरिया जरा धीरे चल सागर भला क्या देगा
फितरत है समंदर की खारा ही बना देगा

कोई शै इस दुनिया में बस दूर से अच्छी है
नज़दीक अगर पहुँचे सूरज भी जला देगा

नादाँ है अभी बुलबुल कर ले सौ वफ़ा कर ले
सैयाद तो जालिम है देगा तो दगा देगा

जीवन से मिलोगे जब फिर प्यार तलाशोगे
तब मील का हर पत्थर मेरा ही पता देगा

इंसान ही हूँ आखिर मुमकिन है खता की हो
अब लौट के भी आजा कब तक ये सजा देगा

वो दिल तक आने का रस्ता तो बना लेंगे
गुस्ताख ज़माना है दीवार उठा देगा

इस शहरे तमन्ना को बर्बाद किया जिसने
आबाद रहे वो भी आशीष दुआ देगा


२९ अगस्त २०११

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