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                   अनुभूति में 
					
					आशीष श्रीवास्तव की रचनाएँ- 
                  अंजुमन में-- 
					आज बरसों हुए 
					गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का 
					जैसे कभी अपना माना था 
					दिल को बचाना मुश्किल था 
					 
					दरिया ज़रा 
					धीरे चल 
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					गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का  
					 
					
					गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का फिर एक कहानी कहता हूँ  
					कुछ शेरो में कुछ मिसरों में सारी जिंदगानी कहता हूँ  
					 
					लहरों से उलझती कश्ती को मंजिल का ठिकाना याद नहीं  
					हरसत है कहीं रूक जाने की फितरत को रवानी कहता हूँ  
					 
					संगदिल को हमारी बेफिक्री रास आये तो कैसे रास आये  
					दुनिया मुझे पागल कहती है मैं उसको दिवानी कहता हूँ   
					 
					समझाइश वाइज़ की अक्सर मुझको बेमानी लगती है  
					वो आग इश्क को कहते है मैं इश्क को पानी कहता हूँ 
  
					आशीष हमारी महफ़िल से डर है न कही वो उठ जाये  
					नयी बात वो सुनने बैठे है मैं बात पुरानी कहता हूँ   
					 
					
					२९ अगस्त २०११ 
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