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नयी रचनाओं में-
अचेतन और चेतन में
इस ज़मीं से आसमाँ तक
कैसे दिन
नयन से जो आँसू
भाप बनकर

छंदमुक्त में-
नदी छह कविताएँ

अंजुमन में-
अपने गम को
कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर

प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं

हवा तो हल्की आने दो

 

अचेतन और चेतन में

अचेतन और चेतन में सदा तुझको ही पाया है
तेरी ही तिश्नगी में हमने तो खुद को भुलाया है

बहुत है शोर जिसमें दब गयी आवाज़ है अपनी
इसी की आड़ में उसने कहीं सच को छुपाया है

मचलता आ गया देखो ये अपना आम का मौसम
कहीं से ढूँढ कर बाग़ों ने कोयल को बुलाया है

उसे हम बददुआ भी दें तो खुद को ठेस लगती है
यही सच है, मगर उसने, मेरे दिल को दुखाया है

कहीं वे उठ न जाएँ नींद से आहट तेरी पाकर
कि पानी ही पिला के हमने बच्चों को सुलाया है

२७ जुलाई २०१५

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