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अपने गम को
कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर

प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं

हवा तो हल्की आने दो

  प्यार करके जताना
 
प्यार करके जताना न आया हमें
इसलिए मुस्कुराना न आया हमें

आह भरते रहे सुबह से शाम तक
हाल दिल का बताना न आया हमें

शोख नजरों से बातें बहुत की मगर
शायरी में सजाना न आया हमें

बात थी आँख की सो जुबाँ चुप रही
पर नजर का उठाना न आया हमें

कुछ ऐसी कशिश उनके दिल में भी थी
भूलकर भी भुलाना न आया हमें

५ मई २०१४

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