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कबतक यूँ खफा रहोगे
दरख़्तों पे नज़र
पंछियों के शोर

प्यार करके जताना
मुझे घर से निकलना
शहर का चेहरा
यह जो हँसता गुलाब है
हम छालों को कहाँ गिनते हैं

हवा तो हल्की आने दो

  शहर का चेहरा

शहर का चेहरा खिला हुआ है
चमन को सूरज मिला हुआ है

ये कौन आया है बज़्म में फिर
जो होंठ सबका सिला हुआ है

बहुत है हलचल अब इसके भीतर
जो आजकल वह हिला हुआ है

लगी हुई है ये आग जब तक
धुएँ को मकसद मिला हुआ है

जो राजरानी हुआ है जीवन
तो मन हमारा खिला हुआ है

२१ जनवरी २०१३

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