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अनुभूति में महावीर उत्तरांचली की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा

कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को

 

नज़र में रौशनी है

नज़र में रौशनी है
वफ़ा की ताज़गी है

जियूँ चाहे मैं जैसे
ये मेरी ज़िंदगी है

ग़ज़ल की प्यास हरदम
लहू क्यों माँगती है

मेरी आवारगी में
फ़कत तेरी कमी है

इसे दिल में बसा लो
ये मेरी शायरी है

१ सितंबर २०१६

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