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अनुभूति में महावीर उत्तरांचली की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा

कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को

 

साधना कर

साधना कर यों सुरों की, सब कहें क्या सुर मिला
बज उठें सब साज दिल के, आज तू यों गुनगुना

हाय! दिलबर चुप न बैठो, राजे-दिल अब खोल दो
बज़्मे-उल्फ़त में छिड़ा है, गुफ्तगू का सिलसिला

उसने हरदम कष्ट पाए, कामना जिसने भी की
व्यर्थ मत जी को जलाओ, सोच सब अच्छा हुआ

इश्क की दुनिया निराली, क्या कहूँ मैं दोस्तो
बिन पिए ही मय की प्याली, छा रहा मुझपर नशा

मीरो-गालिब की जमीं पर, शेर जो मैंने कहे
कहकशां सजने लगा और लुत्फ़े-महफिल आ गया

१५ फरवरी २०१६

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