अनुभूति में अमरेन्द्र
सुमन
की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अपने ही लोगों को खिलाफ
एक पागल
बुचुआ माय
छंदमुक्त में-
अकाल मृत्यु
अगली पंक्ति में बैठने के क्रम में
उँगलियों को मुट्ठी में तब्दील करने की
जरुरत
एक ही घर में
धन्यवाद मित्रो
नाना जी का सामान
नुनुवाँ की नानी माँ
फेरीवाला
रोशनदान
व्यवस्था-की-मार-से-थकुचाये-नन्हें-कामगार-हाथों-के-लिये
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अकाल मृत्यु
बेटी-बेटा
नाती-पोता
दोस्त-यार
अपना-पराया
घर-परिवार
इन तमाम तरह की जिम्मेवारियों को देखने,
समझने-बूझने
समझाने-बुझाने से पहले ही
जिन्हें आमंत्रित कर लेता हो काल अपनी ओर
असमय
समय
जो किसी के बस में नहीं
जिसके आगे-पीछे कोई नहीं
जो किसी के लिये नहीं
जिसकी कोई सीमा नहीं
जिसका कोई आकार नहीं
कोई मुकम्मल पहचान नहीं
उठा ले जाता हो
बिना किसी सूचना के
किसी को भी
किसी भी क्षण
किसी भी स्थान से
बिना किसी पूर्वाग्रह के
माँ-बाप की नजरों से
बेटा-बेटी को
बेटा-बेटी की नजरों से माता-पिता,दादी-दादा को
पति की मौजूदगी में पत्नि को
सास की मौजूदगी में बहु को
बहु की नजरों से सास को
पूरे परिवार की मौजूदगी में किसी बच्चे को
जो नहीं देखता
धूप-छाँव
दिन-रात
अँधेरा-उजाला
गोरा-काला
एक आम आदमी की न्यूनतम आयु से पहले ही
छोड़ जाने को विवश कर देता हो जो
किसी को धरा-संसार
क्या कहेगें इसे
अकाल मृत्यु ही न ?
३ फरवरी २०१४
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