अनुभूति में अमरेन्द्र
सुमन
की रचनाएँ—
नई रचनाओं में-
अपने ही लोगों को खिलाफ
एक पागल
बुचुआ माय
छंदमुक्त में-
अकाल मृत्यु
अगली पंक्ति में बैठने के क्रम में
उँगलियों को मुट्ठी में तब्दील करने की
जरुरत
एक ही घर में
धन्यवाद मित्रो
नाना जी का सामान
नुनुवाँ की नानी माँ
फेरीवाला
रोशनदान
व्यवस्था-की-मार-से-थकुचाये-नन्हें-कामगार-हाथों-के-लिये
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फेरीवाला
घर की मुँडेर पर
कौओं के काँव –काँव करने से पहले
कपड़े का गट्ठर कंधे पर सहेजे
अविराम वह चला जा रहा था एकान्त, अंतहीन दिशा की ओर...
वह चला जा रहा था...
उन असंभावित ठिकानों की ओर
जहाँ से दो जून रोटी के लिये
नकद प्राप्ति की आशा बेमानी भी हो सकती थी
उसके लिये
विश्वास की नैया में सवार
रोज की भाँति फिर भी वह चला जा रहा था
वह चला जा रहा था
देश-समाज की समस्याओं से इतर
घर चलाने की चिंता में कोल्हू के बैल की तरह
खुद को शामिल करते
वह चला जा रहा था
उन मासूम बच्चे-बच्चियों की परवरिश की चिन्ता में अकेले
असमय काल के गाल में समा गए
जिनके माता-पिता पिछले साल
दूध की जगह जिन्हें प्राप्त हो रहा था
नमक घुला पानी
गिनती की रोटियाँ
कई-कई दिनों की थकावट से
लगातार संघर्ष के बावजूद
पगडंडियों से शहर तक
उसे तय करने थे वे रास्ते
जिनके भरोसे वह आश्वस्त कर चुका था बच्चों को
अगले कुछ दिनों के राशन-पानी की जुगाड़ के लिये
वह चला जा रहा था
अपने छोटे-छोटे कदमों पर बल देते
उसी एक ठिकाने की ओर
दूसरे दिन आने का आश्वासन देकर
जो ग्राहक चाह रहे थे अपना पिंड छुड़ाना
एक छोटी सी पूँजी का गट्ठर
सँभाले जा रहा था एक फेरीवाले के संपूर्ण जीवन का बोझ
बच्चों की स्वभाविक हँसी
उनके मृत माँ-बाप की इच्छा
३ फरवरी २०१४
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