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अनुभूति में बद्रीनारायण की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कौन रोक सकता है
दिल्ली जाना है
पहाड़ की चढ़ाई
माँ का गीत
राष्ट्रीय कवि

 

राष्ट्रीय कवि

सीधी दिशा में चलने में होती है आसानी
साथ देती है प्रकृति, साथ देता है आसमान
हवाएँ झूम-झूम पथ बुहारती है
पेड़, रुख और आरामगाह सब खड़े होते हैं
साथी की तरह नियत यात्रा में
पीर, फकीर, गाय और कनफट जोगी
आज भी चल रहे हैं उल्टी दिशा में
मैं यत्न कर-कर के थक गया
पर हमारा यह राष्ट्रीय कवि
बार-बार क्यों कतरा जाता है
उल्टी दिशा में चलने से

उल्टी दिशा में भँवर खुलते हैं
उल्टी दिशा में मिलते हैं राजदार सुरंग
उल्टी दिशा में ही
अग्नि की नदी पार करने के तुरत बाद
दिखते हैं रत्नों के पहाड़
उल्टी दिशा में ही कामधेनु गाय मिलती है
उल्टी दिशा में ही मिलते हैं
मनोकामनाएँ पूरे करने वाले वृक्ष
उल्टी दिशा में ही बाबा फरीद मिलते हैं
यह ठीक है कि उल्टी दिशा में
जलजले, खाइयाँ, जल्लाद
और ठगों वाले सराय भी मिलते हैं
पर उल्टी दिशा में ही अनहदनाद गूँजते हैं
उल्टी दिशा में ही उठता है अन्तःतम से आत्म प्रकाश
उल्टी दिशा में ही बुझती है मन की प्यास
उल्टी दिशा में ही चल मेरे मन।

२९ जुलाई २०१३

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