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अनुभूति में धर्मेन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन' की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
कहे कौन उठ

जितना ज्यादा हम लिखते हैं
दिल है तारा
बाँध
मौसम तो देखिये

क्षणिकाओं में-
बारह क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
अच्छे बच्चे
काश यादों को करीने से
गरीबों के लहू से
चंदा तारे बन रजनी में
चिड़िया की जाँ
छाँव से सटकर खड़ी है धूप
जो भी मिट गए तेरी आन पर
दे दी अपनी जान
निजी पाप की
मिल नगर से

छंदमुक्त में-
अम्ल, क्षार और गीत
दर्द क्या है
मेंढक
यादें
हम तुम

 

चिड़िया की जाँ

चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है
पालन कर के देखो एक जमाना लगता है

जय जय के पागल नारों ने कर्म किए ऐसे
हर जयकारा अब ईश्वर पर ताना लगता है

दूर बजें गर ढोल कहीं सबको मीठे लगते
चिल्लाता जनगण, संसद को गाना लगता है

कल तक दीप बुझाने का आरोपी था लेकिन
सत्ता पाने पर सबको परवाना लगता है

टूटेंगें विश्वास कली से मत पूछो कैसा
खुशबू देवों को देकर मुरझाना लगता है

जाँच समितियों से करवाकर कुछ ना पाओगे
उसके घर में शाम सबेरे थाना लगता है

७ नवंबर २०११

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