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अनुभूति में दिविक रमेश की रचनाएँ-

अंजुमन में
रात में भी
आए भी तो
हाक़िम हैं

कविताओं में
उम्मीद
एक बची हुई खुशी
बहुत कुछ है अभी
रहस्य अपना भी खुलता है
सबक
जीवन

क्षणिकाओं में
हस्तक्षेप

संकलन में
जग का मेला- चीं चीं चूं चूं

  बहुत कुछ है अभी

कितनी भी भयानक हों सूचनाएँ
क्रूर हों कितनी भी भविष्यवाणियाँ
घेर लिया हो चाहे कितनी ही आशंकाओं ने
पर है अभी शेष बहुत कुछ
बहुत कुछ
जैसे होड़।

अभी मरा नहीं है पानी
हिल जाता है भीतर तक
सुनते ही आग।

अभी शेष है बेचैनी बीज में
अकुला जाता है जो
भूख के नाम से।

अभी नहीं हुई चोट अकेली
है अभी शेष दर्द
पड़ोसी में उसका।

हैं अभी घरों के पास
मुहावरों में
मंडराती छतें
हैं अभी बहुत कुछ
बहुत कुछ है पृथ्वी पर।

गीतों के पास हैं अभी वाद्ययंत्र
वाद्ययंत्रों के पास हैं अभी सपने
सपनों के पास हैं अभी नींदें
नींदों के पास अभी रातें
रातों के पास हैं अभी एकान्त
एकान्तों के पास हैं अभी विचार
विचारों के पास हैं अभी वृक्ष
वृक्षों के पास हैं अभी छाहें
छाहों के पास हैं अभी पथिक
पथिकों के पास हैं अभी राहें
राहों के पास हैं अभी गन्तव्य
गन्तव्यों के पास हैं अभी क्षितिज
क्षितिजों के पास हैं अभी आकाश
आकाशों के पास हैं अभी शब्द
शब्दों के पास हैं अभी कविताएँ
कविताओं के पास हैं अभी मनुष्य
मनुष्यों के पास है अभी पृथ्वी।

है अभी बहुत कुछ
बहुत कुछ है पृथ्वी पर
बहुत कुछ
जैसे होड़।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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