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अनुभूति में हरे राम समीप की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया
क्या हुआ उपवन में
तू भूख, प्यास, जुल्म
सवाल काग़ज़ पर

अंजुमन में-
दावानल सोया है कोई
बदल गए हैं यहाँ
वेदना को शब्द
स्याह रातों में
हमको सोने की कलम

दोहे-
आएगी माँ आएगी
गर्व करें किस पर
प्रश्नोत्तर चलते रहे

छंदमुक्त में-
आस न छोड़ो
कविता भर ज़मीन
धीरज
पूजा
योगफल
शब्द
शोभा यात्रा
सड़क
सेल

 

 

प्रश्नोत्तर चलते रहे

प्रश्नोत्तर चलते रहे जीवन में चिरकाल
विक्रम मेरी ज़िंदगी वक्त बना बेताल

जाने कैसी चाह ये जाने कैसी खोज
एक छाँव की आस में चलूँ धूप में रोज़

खाली माचिस जोड़कर एक बनाऊँ रेल
बच्चे-सा हर रोज़ मैं इसको रहा धकेल

संशय के सुनसान में जला कर दीप
दुख की आहट रात भर सुनता रहा 'समीप'

जो जैसा जब भी मिला लिया उसी को संग
यारो मेरे प्यार का पानी जैसा रंग

पानी ही पानी रहा जिनके चारों ओर
प्यास-प्यास चिल्ला रहे वही लोग पुरज़ोर

क्यों रे दुखिया क्या तुझे इतनी नहीं तमीज़
मुखिया के घर आ गया पहने नई कमीज़

एक जाए तो दूसरी मुश्किल आए तुरंत
ख़त्म नहीं होता यहाँ इस कतार का अंत

पुलिस पकड़कर ले गई सिर्फ़ उसी को साथ
आग बुझाने में जले जिसके दोनों हाथ

मरने पर उस व्यक्ति के बस्ती करे विलाप
पेड़ गिरा तब हो सकी ऊँचाई की नाप

आएगी माँ आएगी यों मत हो मायूस
तू बस थोड़ी देर तो और अंगूठा चूस

कैसे तय कर पाएगा वो राहें दुश्वार
लिए सफ़र के वास्ते जिसने पाँव उधार

फिर निराश मन मैं जगी नवजीवन की आस
चिड़िया रोशनदान पर फिर से लाई घास

२५ फ़रवरी २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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