अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में पंकज त्रिवेदी की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
मैं और मत्स्य कन्या (पाँच कविताएँ)

छंदमुक्त में
अनमोल मोती
झुग्गियाँ
तृषा
दस्तक
नसीहत
निःशब्द
नीम का पेड़
पता ही न चला
पूरा आकाश जैसे
बचपन
बातें
मन या शरीर
सड़क के बीच
सवाल
सुख
हरा आँगन

झुग्गियाँ

बढ़ रही थी
मरनेवालों तादात
जो रहते थे झुग्गियों में
पास में ही इमारत थी, दस मंज़िला
जो ढह गई थी अचानक

भूकंप में बेघर हो गए थे कई लोग
इमारत का मलबा झुग्गियों पर
और
मलबे से लाशों का कारवाँ...

नेताओं ने तुरंत किया दौरा, उस घटना स्थल का
कुछ झुग्गीवालों से मिले भी, और
मोहर लगा दी, उस प्रत्येक लाशों पर
पूरे एक लाख रुपए की...

बच गए थे, कुछ लोग जो दस मंज़िला इमारत में
ही रहते थे
सोचने लगे वह भी-
काश
झुग्गियों में रहते होते हम भी...!!!

१३ अक्तूबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter