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नीम का पेड़

ये नीम का पेड़
वात्सल्यभरी मुस्कराहट से,
हरियाली ठंडक से
मुझे तरोताज़ा रखता है
जो मेरे जन्म से पहले भी था,
आज भी है,
जिसे बोया था मेरे पिता ने

खेलते थे हम
गिल्ली-डंडा उसकी छाँव में
यहीं खटिया बिछाकर बैठते-सोते थे हम
इसी के नीचे बैठती गैया हमारी और बछड़ा
इसी के नीचे सुस्ताती
कुतिया "रातडी..." जिस पर
सवारी करता मैं !
एक परिवार था हमारा जिसमें
हम भाई-बहन और नीम का पेड़
आज मेरी बेटियों से कहता हूँ तो -
उन्हें आश्चर्य होता है
शहर की
काली नागिन सी सडकों पर दौड़ते
उनके पाँव अब
मिट्टी को स्पर्श नहीं कर पाते
न गैया के लम्बे थन से दूध पीया उन्होंने
न गर्म दोपहर की छाँह लूटी

मुझे याद आता है वह नीम का पेड़
जिसकी कड़वाह
बीमारियों से हमेशा निजात दिलाती,
और माँ की याद ले आती
हरी पत्तियों से गर्म पानी में उबलती
कड़वाहट भरी गंध
अब छूट गयी है हमसे...

आज बीमारियों का डेरा,
दवाईयों का ढेर देखकर
वह नीम का पेड़ याद आता है
जो साक्षीभाव से हमेशा देखता रहता,
उस नीम के पेड़ की अनंत शाखाएँ
आज भी फैली हुई है मेरे अंदर

२९ नवंबर २०१०

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