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                   जन्म 
					 
					ऊँट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर 
					चल देंगे अभी बंजारे 
					दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा.  
					 
					धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में 
					डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे 
					बाटियाँ और दाल 
					छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर 
					घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय 
					 
					कितनी अनमोल,  
					कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें 
					जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन.  
					 
					वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल 
					और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ. 
					पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा 
					जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक 
					इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को 
					काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर.  
					 
					बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने 
					किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है 
					कार्तिक की सप्तमी का चाँद 
					सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे 
					एक छोटे से टाट की आड़  
					और लालटेन की मद्धिम रोशनी में 
					बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी 
					एक बच्चे को!  
					 ४ मार्च २०१२  |